सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा उसकी मशाल अब तुम्हारे हाथों में है, इस मशाल को कभी बुझने मत देना : स्वतंत्रता सेनानी कप्तान अब्बास अली।

Date: 23/03/2022

- राजेश कुमार 

देश की आजादी के लिये बड़ी संख्या में देशवासी शहीद हुए। सालो-साल कैद में रहे। यातना सहते रहे। उनकी हीं कुर्बानी का परिणाम है कि आज हम स्वतंत्र हैं। इस स्वतंत्रता के लिये जो कीमत चुकानी पड़ी वह कल्पना से भी परे है। आजादी के मतवालों ने हस्ते-हंस्ते अपनी जिंदगी को कुर्बान कर गये। उनका सपना था कि भारत आजाद और लोकतांत्रिक मूल्क बने और आजादी के बाद देश की बुनियाद इतनी मजबूत हो जहां नफरत के लिये कोई स्थान न हो। समतामूलक समाज का निर्माण हो। इस कोशिश में सदैव लगे रहे स्वतंत्रता सेनानी कप्तान अब्बास अली। वे आजाद हिंद फौज में कप्तान थे। देश की आजादी के लिये हर मौर्चे पर संघंर्ष किये और यातनाएं सही। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। आजादी के बाद कप्तान अब्बास अली देश की एकता-अखंडता और स्वस्थ समाज निर्माण के लिये ताउम्र कार्य करते रहे। आइये जानते हैं जाबांज स्वतंत्रता सेनानी कप्तान अब्बास अली के बारे में । 

कप्तान अब्बास अली का संक्षिप्त जीवन परिचय (3, जनवरी 1920-11,अक्टूबर 2014) :

3 जनवरी 1920 को कलंदर गढी, खुर्जा, जिला बुलंदशहर में जन्में कप्तान अब्बास अली की प्रारंभिक शिक्षा जे.ए.एस.इंटर कॉलेज खुर्जा और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) अलीगढ में हुई। बचपन से हीं आप क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित रहे और पहले नौजवान भारत सभा और फिर स्टूडेंट फेडरेशन (एस. एफ) के सदस्य बने।  1939 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय  से इंटरमीडिएट करने के बाद आप दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बिर्तानी सेना में भरती हो गए और 1943 में जापानियो द्वारा मलाया में युद्ध बंदी बनाये गए। इसी दौरान आप जनरल मोहन सिह द्वारा बनायी गयी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। 1945 में जापान की हार के बाद मलाया में ब्रिटिश सेना द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए। 1946 में मुल्तान के किले में रखा गया, कोर्ट मार्शल किया गया और सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आजाद हो जाने की वजह से आप रिहा कर दिये गए।

मुल्क आजाद हो जाने के बाद 1948 में डा. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए और 1966 में  संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तथा 1973 में सोशलिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री निर्वाचित हुए। 1967 में उत्तर प्रदेश में पहले संयुक्त विधावक दल और फिर पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने में आपने अहम भूमिका निभायी। आपातकाल के दौरान 1975-77 में 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रत जेत में डी.आई. आर आर और मीसा कानून के तहत बंद रहे। 1977 में जनता पार्टी के गठन होने के बाद उसके सर्व प्रथम  राज्याध्यक्ष बनाये गए और 1978 में 6वषों के लिए विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए। 

आजाद हिन्दुस्तान में 50 से अधिक बार विभिन्न जन-आन्दोलनों के दौरान सिविल नाफरमानी करते हुए गिरफ्तार हुए और जेल यात्रा की। सन 2009 में आपकी आपकी आत्मकथा  "न रहूं किसी का दस्तनिगर-मेरा सफरनाम  " राजकमल प्रकाशन दिल्ली द्धारा प्रकाशित की गई।  94 वर्ष की उम्र तक आप अलीगढ , बुलंदशहर , लखनऊ  और दिल्ली में होने वाले जन-आन्दोलनों में शिरकत करते रहे और अपनी पुरजोर आवाज़ से युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करते रहे। 

11 अक्टूबर 2014 को दिल का दौरा पड़ने के कारण अलीगढ में आपका निधन हो गया।

 

देश के नाम

कप्तान अब्बास अली का संदेश 

प्यारे दोस्तों!

मेरा बचपन से हीं क्रांतिकारी विचारधारा के साथ संबंध रहा है। 1931 में जब पांचवी जमात का छात्र था, 23 मार्च 1931 को अंग्रेज हुकूमत ने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को लाहौर मे सजाए मौत दे दी। सरदार भगत सिंह के फांसी के तीसरे दिन इसके विरोध में मेरे शहर खुर्जा में एक जुलूस निकाला गया, जिसमें मैं भी शामिल हुआ। हमलोग बा-आवाजे बुलंद गा रहे थे...

भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा

हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा

ऐ, दरिया-ए-गंगा तू खामोश हो जा

ऐ दरिया-ए-सतलज तू स्याहपोश हो जा

भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा

हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा.....

इस घटना के बाद मैं नौजवान भारत सभा के साथ जुड़ गया और 1936-37 में खुर्जा से हाई स्कूल का इम्तिहान पास करने के बाद, जब मैं अलीगढ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया तब वहां मेरा संपंर्क उस वक्त के मशहूर लीडर कम्युनिस्ट लीडर कुंवर मुहम्मद अशरफ (प्रो. के. एम अशरफ के नाम से जाने जाते हैं और भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों सदस्यों में से एक थे) से हुआ जो उस वक्त ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य होने के साथ साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के भी मेंबर थे लेकिन डॉक्टर अशरफ, गांधी जी के विचारधारा से सहमत नहीं थे और अक्सर कहते थे कि " ये मुल्क गांधी के रास्ते से आजाद नहीं हो सकता"। उनका मानना था कि जबतक फौज बगावत नहीं करेगी मुल्क आजाद नहीं हो सकता। डॉक्टर अशरफ अलीगढ में  'स्टडी सर्कल' ' चलाते थे और ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के भी सरपरस्त थे। उन्हीं के कहने पर मैं स्टूडेंट फेडरेशन का मेंबर बना। उसी समय हमारे जिला बुलंदशहर में सूबाई असेंबली का एक उपचुनाव हुआ। उस चुनाव के दौरान मैं डॉक्टर अशरफ के साथ रहा और कई जगह चुनाव सभाओं को संबोधित किया। उसी मौके पर कांग्रेस के ऑल इंडिया सद्र जवाहर लाल नेहरू भी खुर्जा तशरीफ लाये और उन्हें पहली बार नजदीक से देखने और सुनने का मौका मिला। 

इसके एक साल पहले हीं यानी 1936 में स्टूडेंट फेडरेशन कायम हुआ था और पंडित नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था जबकि मुस्लिम लीग के नेता कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिनाह ने स्टूडेंट फेडरेशन के स्थापना सम्मेलन की सदारत की थी। 1940 में स्टूडेंट फेडरेशन में पहली बार विभाजन हुआ। और नागपुर में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद गांधीवादी समाजवादियों ने ऑल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस के नाम से एक अलग संगठन बना लिया, जो बाद में कई धड़ों में विभाजित हुआ। 

1939 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट करने के बाद डॉक्टर अली अशरफ की सलाह पर मैं, दूसरे विश्व यु्द्ध के दौरान बिर्तानी सेना में भर्ती हो गया। और 1943 में जापानियों द्धारा मलाया में युद्धबंदी बनाया गया। इसी दौरान जनरल मोहन सिंह द्धारा बनायी गयी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में देश की आजादी की लड़ाई लड़ी। 1945 में दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्धारा युद्धबंदी बना लिया गया। 1946 में मुझे मुल्तान के किले में रखा गया, कोर्ट मार्शल किया गया और सजा-ए-मौत सुनायी गई।  लेकिन उसी समय पंडित नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हो जाने और देश के आजाद का ऐलान हो जाने की हो जाने की वजह मुझे रिहा कर दिया गया। 

मुल्क आजाद हो जाने के बाद 1948 में सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया तो मैं आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण  और डॉ राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गया और पहले जिला पार्टी की कार्यकारिणी का सदस्य और फिर 1956 में जिला सचिव चुना गया। बाद में 1960 में मुझे सर्वसम्मति से उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी का सदस्य तथा 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) बनने पर उसका पहला राज्य सचिव चुना गया। 1973 में संसोपा और प्रसोपा का विलय होने के बाद बनी सोशलिस्ट पार्टी , उत्तर प्रदेश का राज्य मंत्री चुना गया। 

1967 में उत्तर प्रदेश में पहले संयुक्त विधायक दल और फिर चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने में अहम भूमिका निभायी। आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक लगभग 15 माह तक बुलंदशहर, बरैली, और नैनी सेंट्रल जेल में DIR और MISA के तहत बंद रहा। 

अपने लगभग 78 वर्षों के सार्वजनिक जीवन में शुरूआती 16-17 वर्ष तो देश को आजाद कराने की जद्दोजहद में बीते और बाद के करीब 60 वर्ष समतामूलक समाज बनाने और समाजवादी आंदोलन में बीते। 

दोस्तों, 

बचपन से हीं अपने इस अजीम मुल्क को आजा़द और खुशहाल देखने की तमन्ना थी जिसमें जात-बिरादरी, मजहब और ज़बान या रंग के नाम पर किसी तरह का इस्तेहसाल (शोषण) न हो। जहां हर हिंदुस्तानी सर ऊंचा करके चल सके, जहां अमीर-गरीब के नाम पर कोई भेदभाव न हो। हमारा पांच हजार साल इतिहास जात और मजहब के नाम पर शोषण का इतिहास रहा। अपनी जिदगी में अपनी आंखों के सामने अपने इस अज़ीम मुल्क को आजाद होते हुए देखने की ख्वाहिश तो पूरी हो गई लेकिन अब भी समाज में गैर-बराबरी, भ्रष्टाचार, जुल्म, ज्यादती, और फ़िरकापरस्ती का जो नासूर फैला हुआ है उसे देखकर बेहद तकलीफ होती है। दोस्तों उम्र के इस पड़ाव पर हम तो चिराग-ए-सहरी (सुबह का दिया) हैं, न जाने कब बुझ जायें लेकिन आपसे और आनेवाली नस्लों से यही गुजारिश और उम्मीद है कि सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा उसकी मशाल अब तुम्हारे हाथों में है, इस मसाल को कभी बुझने मत देना। 

इन्कलाब जिंदाबाद!

आपका

कप्तान अब्बास अली। 

 



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