बीजेपी में राजनीतिक डर है कि अध्यक्ष बनते हीं राहुल गांधी मंडल आयोग की सिफारिश को तेजी से बढायेंगे।

Date: 06/06/2021

 राजेश कुमार

कांग्रेस पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा? इसको लेकर विचार मंथन जारी है। इस बात का जोरशोर से प्रचार किया जा रहा है कि गांधी परिवार के बाहर से किसी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना चाहिये। किसी भी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा यह सब कुछ पार्टी का अंदरूनी मामला होता है। लेकिन राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते सभी लोगों की नजरें इस बात पर टिकी हुई हैं कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा? राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने की प्रबल संभावनाएं हैं। इनके अलावा शायद और कोई नाम न हो जिसे पार्टी के अधिकांश नेता और समर्थक स्वीकार करें। 

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं। सफलता और असफलता दोनों हीं दौर का अनुभव है उनके पास। ऐसे में अगर राहुल गांधी के अलावा अन्य किसी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है तो शायद हीं वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को चुनाव में टक्कर दे सके। लेकिन साथ हीं यह भी सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के बढते राजनीतिक तूफान को रोक पायेंगे? 

कई पत्रकारों, लेखकों और राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कई मामले में असफल रही है। किसान हो या श्रमिक या आम नागरिक सभी परेशान हैं। नोटबंदी और कोरोना के मामले में अपनायी गई नीतियों से जनता को काफी परेशानी हुई। बेरोजगारी में लगातार बढोतरी हो रही है। इन सबसे जनता परेशान है। हालात को देख जनता खुद हीं बतौर विकल्प राहुल गांधी का 

चुनाव करेगी। लेकिन क्या यह सब कुछ इतना आसान है। इसका उत्तर सिर्फ नहीं है। प्रधानमंत्री कोरोना काल को एक विशेष संकट बता चुके हैं। ऐसा संकट जिससे पूरी दुनिया त्रस्त है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अब राहुल गांधी में अदृश्य राजनीति को समझने की शानदार क्षमता है। उनके नेतृत्व में बीजेपी को हराया जा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को हराना मुश्किल है वर्तमान नीतियों के साथ। और यह समय के साथ सिद्ध भी हुआ। आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी कौन सी जादू की छड़ी चला दी कि उन्हें बीजेपी के सबसे बड़े लीडर रहे वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी से भी बहुत अधिक सफलता हासिल हुई। ऐतिहासिक सफलता। 

दरअसल भारत में जातिवाद सभी कुछ से उपर है। इस जातिवाद के पोषक इसे एक हथियार समझते थे, जो अब राजनीति में उन्हें हीं भारी पड़ गया। सामाजिक स्तर पर दलित समाज को अगड़े वर्ग के लोगों ने जितना दूर रखा उतने हीं राजनीतिक रूप से अगड़े और दलित वर्ग एक साथ रहे। कांग्रेस के वोट बैंक का आधार हीं था ब्राह्ण, दलित और मुस्लिम। पिछड़े वर्ग को कभी भी राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी पार्टी में ज्यादा महत्व नहीं दिया। लेकिन साल 1989-90 की राजनीति ने देश के राजनैतिक इतिहास को हीं बदल दिया। और इसका सारा श्रेय जाता है पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह, आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बड़े समाजवादी विचारक व पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को। 

 जैसे हीं तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गे को आरक्षण देने के लिये मंडल आय़ोग की सिफारिश लागू करने की बात कहीं, भारतीय राजनीति ने बदलाव की करवट लेने शुरू कर दिये। उन्होंने यह ऐलान तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की सलाह पर किया। पिछड़े वर्ग की आबादी औसतन 52 प्रतिशत से अधिक है। जो किसी भी राजनीति को बदलने की मादा रखता था। और हुआ भी वहीं। इसके बाद बीजेपी और कांग्रेस दोनो में ही खलबली मच गई। केंद्र सरकार में बीजेपी शामिल थी। राजनीतिक पार्टी होने के कारण सीधे तौर पर मंडल आयोग का विरोध करना बीजेपी के लिये कठिन था। ऐसे में लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर बनाने के लिये रथ यात्रा निकाला गया। देश में एक साथ दो तनाव पैदा हो गये जातीय और धार्मिक तनाव। 

राजनैतिक रूप से संवेदनशील राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश में जातीय खेमे बाजी तेजी से होने लगी। एक दूसरे को चुनौती दी जाने लगी। साथ हीं सांप्रदायिक उन्माद भी बढने लगा। ऐसे में लालू यादव (मुख्यमंत्री बिहार) और मुलायम सिंह यादव (मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश) ने मुस्लिम समाज की रक्षा लेने के लिये पूरी ताकत लगा दी। एक नया समीकरण उभर आया पिछड़े, दलित-आदिवासी और मुस्लिम गठजोड़। इसका प्रभाव तीस सालों बाद आज भी है। बहरहाल इस बीच बीजेपी लीडर आडवाणी को गिरप्तार कर लिया गया। बीजेपी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सरकार गिर गई। लेकिन मंडल और कमंडल ने राजनीति में अपना स्थान बना लिया। इसका प्रभाव सिर्फ बिहार-उत्तर प्रदेश तक हीं नहीं रहा बल्कि पूरे देश में फैल गया। इसी के साथ जिस पिछड़े वर्ग को राजनीति में महत्व नहीं दिया जाता था वह पिछड़ा वर्ग अब राजनीति का केंद्र बिन्दु बन चुका था। कांग्रेस और बीजेपी दोनो ही दलों में पिछड़े वर्ग का स्थान नाममात्र था। लालू यादव और मुलायम सिंह यादव का काट इन दलों के पास नहीं थे। बीजेपी ने दलित वर्ग को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की। इसी कड़ी बीजेपी सुप्रीमो मायावती के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में सरकार भी बनाई। पर पिछड़े की राजनीति को कांग्रेस और बीजेपी तोड़ नहीं पाई। लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस से आगे जाते हुए अपनी पार्टी में लालू-मुलायम के काट के लिये पिछड़ी जातियों के नेताओं को आगे बढाना शुरू किया। अन्य पिछड़ी जातियों के नेताओं को अपने साथ जोड़ने का काम शुरू हुआ। लेकिन इस काम में कांग्रेस पार्टी पिछड़ गई। कांग्रेस लीडर के ईर्द गिर्द जितने भी लीडर थे अधिकांशत: अगड़े वर्ग से थे उन्होंने इस बारे में ज्यादा कुछ चर्चा हीं नहीं की पार्टी नेतृत्व से। खैर बात हो रही थी कांग्रेस लीडर राहुल गांधी की जिन्होंने शुरूआती दौर में पिछड़े वर्ग की राजनीति को समझ नहीं पाये थे लेकिन अब वे इस मामले में समझदारी से काम ले रहे हैं।

कांग्रेस लीडर सोनिया गांधी बतौर राजनीतिज्ञ काफी अनुभवी हैं। वे एक मात्र ऐसी लीडर हैं जिन्हें कई पार्टियों का समर्थन और बहुमत हासिल था प्रधानमंत्री बनने के लिये। बहुमत भी थे लेकिन उन्होंने इसका त्याग कर डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने में मुख्य भूमिका अदा की। दोनों ही नेताओं ने मिलकर लगभग 10 साल तक गठबंधन की सरकार चलायी। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने दोषी जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने के खिलाफ फैसला दिया था। इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए यूपीए सरकार ने अध्यादेश जारी किया था। लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, यह पूरी तरह बकवास है, जिसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। कहा जाता है कि राहुल गांधी ने अपने सलाहकारों के दबाव में आकर ये बयान दिये जो राजनीतिक भूल साबित हुई। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे पहला प्रभाव पड़ना था आरजेडी नेता लालू यादव पर। और पड़ा भी। भ्रष्टाचार के आरोप का दबाव झेल रही कांग्रेस पार्टी उस समय भारी दबाव में आ गई जब उन्हें यह पता चला कि पिछड़े वर्ग का बड़ा हिस्सा राहुल गांधी से नाराज है। वो भी लोकसभा चुनाव से पहले। हालांकि अध्यादेश वाले मामले पर गरीबों के मसीहा लालू यादव या उनकी पार्टी की ओर से कुछ नहीं कहा गया लेकिन जनता में जो स्वत: संदेश गया वह यूपीए के लिये अच्छा नहीं था। इसी बीच कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री पद के बीजेपी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर जाति सूचक टिप्पणी कर दी। उनके इस बयान को बीजेपी लीडर मोदी ने हाथो हाथ लिया और कहा कि मुझे निम्न जाति का संबोधित कर अपमानित कर रहे हैं कांग्रेस के लोग। इसके बाद यूपीए बनाम एनडीए की सीमाएं टूट गई। गैरबीजेपी पार्टी के पिछड़ वर्ग का एक बड़ा धड़ा नरेंद्र मोदी के पक्ष में आ गया। और परिणाम सामने है। यह प्रभाव आज भी बना हुआ है। पश्चिम बंगाल में जहां बीजेपी शून्य थी आज मुख्य विपक्षी पार्टी है। 

राहलु गांधी जबतक लालू यादव के महत्व को समझ पाते तबतक बहुत देर हो चुकी थी। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि इस महत्व को कांग्रेस लीडर सोनिया गांधी अच्छी तरह समझती थी। शायद इसलिये अध्यादेश भी लाया गया था। लेकिन कमान से तीर निकल चुका था। उसकी भरपाई की कोशिश नहीं की गई और नतीजा साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी। 

बहरहाल, राहुल गांधी अब अपने सलाहकारों से अलग खुद निर्णय लेने लगे हैं। उन्हें पिछड़े वर्ग की शक्ति का ऐहसास है। बीते गुजरात विधान सभा चुनाव के दौरान से हीं उन्होंने नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। इसके परिणाम भी दिखने लगे। लेकिन आज की तारीख में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के सामने राहुल गांधी या सोनिया गांधी के अलावा किसी अन्य को या गांधी परिवार के बाहर से अध्यक्ष बनाया जाता है तो कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय ढांचा ध्वस्त हो जायेगा। ऐसे में राहुल गांधी ही एकमात्र विकल्प हैं जो कांग्रेस को संभाल सकते हैं। पार्टी संभल जायेगी लेकिन वोट जोड़ने के लिये उन्हें मंडल आयोग को पूरी तरह से लागू करने पर विचार करने की जरूरत है। क्योंकि यहीं एक कारगर मुद्दा है जो नोटबंदी, कोरोना व अन्य मुद्दों पर भारी है। इसी बात को लेकर बीजेपी में राजनीतिक भय बना हुआ है। और राहुल गांधी का जोरदार विरोध जारी है। लेकिन यदि बीजेपी ने मंडल मुद्दे पर विचार कर लिया और कोई कारगर कदम उठा लिया तो तीसरी बार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनना संभव हो, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।  

 नोट - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार, संपादक, ग्लोबल खबर globalkhabar.com , स्टार-एबीबी न्यूज, जी न्यूज , नवभारत  टाइम्स और हिन्दी कंरट न्यूज में लंबे समय तक पत्रकारिता का अनुभव। 

 



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