ऑल इंडिया मेडिकल परीक्षा में ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी। अदालत ने कहा आरक्षण योग्यता में बाधक नहीं।

Date: 22/01/2022

राजेश चंद्रवंशी, ग्लोबल ख़बर globalkhabar.com

आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मेडिकल से संबंधित पाठ्यक्रम की परीक्षा नीट (NEET) के ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी (OBC)के 27 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया है। अदालत ने कहा कि आरक्षण योग्यता में बाधक नहीं है। परीक्षा में उच्च अंक योग्यता का प्रतिनिधित्व नहीं करते। योग्यता सामाजिक रूप से प्रासंगिक होनी चाहिये। इसका वितरण परिणाम को व्यापक बनाता है। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने पोस्ट ग्रेजुएट (PG) और अंडर ग्रेजुएट( UG) ऑल इंडिया कोटा में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण संवैधानिक रूप से मान्य होंगे। सुप्रीम अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि केंद्र को आरक्षण देने से पहले अदालत से अनुमति लेने की जरूरत नहीं। ओबीसी आरक्षण को अदालत ने 7 जनवरी को हीं हरी झंडी दे दी थी लेकिन इस हरी जंड़ी के पीछे के कारण को अदालत ने 21 जनवरी को विस्तार से बताया। 

- संविधान सरकार को यह अधिकार देता है कि जरूरतमंद के लिये विशेष व्यवस्था करे। संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 15 (4) और 15 (5), अनुच्छेद 15 (1) का ही विस्तार है। कमजोर वर्ग के लिये विशेष व्यवस्था करना इसी भावना के अनुरूप है। 

- परीक्षा में कम अंक हासिल करना योग्यता का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। समाज में कई वर्ग ऐसे हैं जो सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से लाभ की स्थिति में रहे हैं। यही सुविधा उनकी अधिक सफलता की वजह है। 

- जिन्हें आरक्षण मिल रहा है और वे अच्छी स्थिति में आ चुका है और जिन्हें आरक्षण नहीं मिल रहा है उस वर्ग से कोई व्यक्ति सामाजिक और आर्थिक रूप से अच्छी स्थिति में नहीं है। तो इस वजह से आरक्षण को गलत नहीं ठहराया जा सकता।  

सु्प्रीम अदालत ने यह साफ कर दिया कि ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण देने के लिये अदालत से अनुमति लेने की जरूरत नही्ं है। इससे पहले अदालत ने 7 जनवरी को हीं नीट पीजी में आर्थिक (EWS) रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण की मंजूरी दे दी थी। साथ हीं अदालत ने यह भी कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर छात्र के आकलन के लिये सालान इनकम 8 लाख तय करना सहीं नहीं लगता। इस पर विस्तृत से चर्चा करने की जरूरत है। सुप्रीम अदालत का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिये। 

 



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