अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही राजद्रोह कानून पर रोक लगाई सुप्रीम कोर्ट ने।

Date: 13/05/2022

ग्लोबल खबर globalkhabar.com

11 मई को राजद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 1870 से चली आ रही इस कानून पर रोक लगा दिया और आदेश दिया कि धार 124-ए के तहत अब कोई नई केस दर्ज नहीं की जाये। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाले तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा राजद्रोह कानून की समीक्षा होने तक अब कोई केस दर्ज न हो। आदेश में जो बातें कही गई हैं वह मीडिया के अनुसार - अब देशद्रोह कानून के तहत मुकदमा दर्ज नहीं होगा, जो मामले लंबित हैं उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया जाये, यह आदेश तबतक लागू रहेगा जबतक सुप्रीम कोर्ट कोई नया आदेश न दे दे, जो लोग इस मामले में पहले से बंद हैं वे राहत के लिये अदालत का रूख कर सकते हैं।

 मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र तथा राज्य नई प्राथमिकियां दर्ज करने, भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे.''प्रधान न्यायाधीश ने आदेश में कहा, ‘‘ अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई में राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ स्पष्ट उदाहरण दिए थे, जैसे कि ‘‘हनुमान चालीसा'' के पाठ के मामले में...इसलिए कानून पर पुनर्विचार होने तक, यह उचित होगा कि सरकारों द्वारा कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए.''

अब इस मामले की सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह में होगी। आखिर राजद्रोह कानून क्या है? नवभारत टाइम्स न्यूज वेबसाइट के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।



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