चीन का जनसंख्या संकट भारत को इससे क्या सीखना चाहिए : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

Date: 02/08/2022

थॉमस माल्थस ने जब जनसंख्या का अपना सिद्धात 1788 इस्वी में पेश किया था, तो दुनिया डर गई थी। माल्थस का कहना था कि जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उसके अनुपात में खाद्यान्न का उत्पादन नहीं बढ़ रहा। इसके कारण दुनिया में खाद्य संकट पैदा हो जाएगा और लोग भूखों मरने लगेंगे। माल्थस ने यह भी कहा कि खाद्यान्न और जनसंख्या में संतुलन बनाए रखने के लिए प्रकृति भी कुछ न कुछ करती रहेगी और अनेक किस्म की प्राकृतिक आपदाएं पैदा होती रहेंगी, जिसके कारण भारी संख्या में लोग मरेंगे और इस तरह जनसंख्या और खाद्यान्न का संतुलन बरकरार रहेगा। संतुलन को बिगड़ने से बचाने के लिए माल्थस ने कहा था कि लोगों को परिवार नियोजन करना चाहिए। वे ब्रह्मचर्य रहें या देर से शादी करे। इसके कारण जनसंख्या की वृद्धि को रोका जा सकेगा और प्राकृतिक आपदाओं से भी सुरक्षा मिलगी और भूखमरी से भी बचा जा सकेगा।

माल्थस का वह डर गलत साबित हुआ। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के बावजूद अनाज का संकट नहीं हुआ। विज्ञान और टेक्नोलाॅजी के विकास ने अनाज उत्पादन बढ़ाने में मदद की। विश्व व्यापार ने कम अनाज वाले इलाकों में ज्यादा अनाज वाले इलाकों से अनाज भेजने में मदद की। माल्थस के विनाशकारी नतीजे भले गलत साबित हुए हों, लेकिन इतना तो सच की उस माल्थीसियन डर ने दुनिया के देशों की सरकारों को परिवार नियोजन के लिए बाध्य किया। उसी डर के साए में सरकारें एक से एक योजनाएं बनाती रहीं, ताकि जनसंख्या के विस्फोट को रोका जा सके। इसका असर यह हुआ कि विकसित देशो मे संख्या का विस्फोट रुका। अपने देश भारत में संख्या विस्फोट तो नहीं रुका, लेकिन सरकारी स्तर पर किए गए प्रयासों से इसका महाविस्फोट तो रुका ही।

भारत ने पहले ‘‘दो या तीन बच्चे, बस’’ का नारा दिया। जाहिराना तौर पर कामयाबी नहीं मिली, पर कुछ न कुछ असर तो हुआ ही होगा। जनसंख्या की बढ़ती वृद्धि दर को देखते हुए फिर ‘‘हम दो, हमारे दो’’ के नारे पर भारत सरकार आई। उसके बाद लड़का हो या लड़की, एक ही काफी की बात की जाने लगी। पहली लड़की पैदा होने पर लोग लड़के की आस में दूसरा पैदा न करें, इसके लिए ‘सिंगल गर्ल’ को कुछ सुविधाएं देने का एलान कर दिया गया। उसका शिक्षा शुल्क माफ करने की घोषणा की गई और विशेष छात्रवृत्ति का एलान कर दिया गया। उसके लिए विशेष फेलोशिप की व्यवस्था कर दी गई।

सरकार द्वारा चलाए गए अभियान और शहरीकरण के कारण जनसंख्या वृद्धि पर भारत में लगाम लग चुकी है। एक स्त्री अब औसतन दो से थोड़ा ही ज्यादा बच्चा पैदा कर रही है और इसके पूरे आसार हैं कि यह कुछ ही वर्षों में दो से नीचे हो जाएगा। उधर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण प्रति साल होने वाली मृत्यु दर भी कम हो रही है और लोगों की औसत आयु भी बढ़ रही है। इसके कारण अभी तो नहीं, लेकिन आने वाले कुछ दशकों में जनसंख्या की विकास दर नकारात्मक भी हो सकती है। हो क्या सकती है, यह हो ही जाएगी, क्योंकि शहरीकरण, बच्चा पालने का बढ़़ता खर्च, शिक्षा और स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च और आवास की समस्याओं के कारण अब लोग कम बच्चा पैदा कर रहे हैं। महिला सशक्तिकरण भी जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सहायता कर रहा है। महिलाओं का शिक्षित होने इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाने लगा है। बच्चे तो महिलाएं ही पैदा करती हैं और वे कितने बच्चे जनें, जब इसका निर्णय महिला के हाथ में ही हो, तो जनसंख्या पर ब्रेक लगना स्वाभाविक है। और यह सब भारत में हो रहा है। भारत में जनसंख्या का बहुत विस्फोट हो चुका। अब और विस्फोट होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है।

लेकिन यदि जनसंख्या घटने लगे, तो फिर क्या होगा? क्या यह हमारे लिए जश्न की बात होगी या शोक मनाने की? जनसंख्या वृद्धि पर तो माल्थस साहब शोक मना रहे थे और कह रहे थे कि इसे रोको, नहीं तो आने वाले दिनों में भुखमरी और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करोगे। अब जब जनसंख्या में संकुचन की संभावना दिख रही है, तो ऐसे हालात पर कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त किया जाय?

यूरोप के कुछ देशों में कमती जनसंख्या पर रोना घोना हम देख चुके हैं। ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए वहां प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लेकिन यदि हमें भारत की जनसंख्या समस्या को समझना हो, तो बेहतर है कि हम चीन की ओर देखें, जो जनसंख्या के मामले में हमारा बड़ा भाई है। चीन अब भी दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और हमारा भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। यह 2022 के आंकड़े पर है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की जनसंख्या को माॅनिटर करने वाली एजेंसी का अनुमान है कि 2023 में जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया का नंबर एक देश हो जाएगा और चीन इससे पिछड़ जाएगा।

फिलहाल, हम इस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं कि भारत नंबर वन है या नंबर टू। हम चर्चा यह कर रहे हैं कि जनसंख्या जब कमने लगे, तो फिर हमारा क्या होगा। जनसंख्या वृद्धि की समस्या को तो हमने बखूबी सामना कर लिया, लेकिन जब जनसंख्या कम होगी, तो फिर क्या होगा? चीन इस बात को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है, क्योंकि 2025 के बाद उसकी जनसंख्या घटने लगेगी। भारत की भी घटेगी, लेकिन उसमें अभी दो या तीन दशक का वक्त है। हम चीन की बात करें। चीन अभी से परेशान है। उसने एक ही बच्चा पैदा करने का कड़ा कानून बना दिया था, जिससे बच्चा पैदा होना बहुत कम हो गया। 2016 में उसने दो बच्चा पैदा करने की छूट दे दी, लेकिन तबतक लोग कम बच्चा करने के फायदे देख चुके थे। जाहिर है, ज्यादा बच्चा पैदा करने में चीनी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। पिछले साल चीन में 3 बच्चे पैदा करने की छूट दे दी। फिर भी मामला नहीं संभल रहा है। नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि के डर से चीन जल्द से बच्चा पैदा करने की ऊपरी सीमा हटा देगा।

जनसंख्या घटने का मतलब है कम आयु के लोगों की कुछ आबादी में योगदान कम होना और अधिक आयु के लोगों का योगदान बढ़ जाना। आज का बाजार मांग आधारित है। कम जनसंख्या होने से अनेक वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो जाएगी और फिर तब अनेक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पाद सरप्लस हो जाएंगे। उसके कारण औद्योगिक गतिविधियों पर ब्रेक लगेगा और फिर मंदी और महामंदी की आशंका पैदा हो सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था वैसे ही निर्यात आधारित है, वह अन्य देशों में और भी ज्यादा माल डंप करेगा, ताकि उसका अपना उद्योग चलता रहे। वह अपने देश के लोगों की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है, लेकिन उपभोक्तावादी समाज में उपभोक्ता भी चाहिए और जनसंख्या घटने से उपभोक्ता तो घटेंगे ही, भले आप लोगों की गुणवत्ता बढ़ा दें।

भारत को अभी से सजग हो जाने की जरूरत है। यहां भी जनसंख्या घटने वाली है। इसलिए उपभोक्ता बाजार भी सिकुड़ेगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि वह अपने उपभोक्ता बाजार और उपभोक्ता संस्कृति पर अभी से नजर रखे।

 नोट  - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं।)



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